Get Latest Health Articles on , नए पिता बनने पर पुरुष भी होते है अवसादग्रस्त
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पिता बनने के बाद पुरुसो में पोस्ट मार्टम डिप्रेसन को नजरअंदाज कर दिया जाता है। अध्य्यन के मुताबिक पहली बार पिता बनने वाले 10 फीसदी व बच्चे के जन्म के बाद 25 फीसदी पुरुसो में अवसाद पाया जाता है।
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नए पिता बनने पर पुरुष भी होते है अवसादग्रस्त |
पोस्ट मार्टम डिप्रेसन को नजरअंदाज
पिता बनने के बाद पुरुसो में पोस्ट मार्टम डिप्रेसन को नजरअंदाज कर दिया जाता है। अध्ययन के मुताबिक पहली बार पिता बनने वाले 10 फीसदी व बच्चे के जन्म के बाद 25 फीसदी पुरुसो में अवसाद पाया जाता है। पेशे से इलेक्ट्रिकल इंजिनियर नीलेश पिता बनने की सुनकर ख़ुशी से उछाल पड़ा पहली बार पीता बनने की यह नयी अनुभूति थी। नाजुक शशु को गोद में लेकर प्यार करना। उसे धीरे धीरे बड़े होते देखना। यहाँ तक की उसके करियर तक के सपने देख लेना लेकिन सब के बिच में नीलेश को अपने काम अपनी गर्भवती पत्नी का भी पूरा ख्याल रखना चाहिए , समय समय पर चेकउप खाना पीना आदि। ढेर सारी जिम्मेदारियां उसके कंधे पर आ पड़ी थी। बच्चे के जन्म पर उसकी मिली जुली प्रतिकृया थी। वह बहोत खुस तो था पर परेशां भी था। बच्चे के लालन पालन में पत्नी हाथ बटाता था। सुबह ऑफिस जाने की जल्दी में नाश्ता किये बिना ही चला जाता। इन जिमेदारियो ने नीलेश में ढेरो बदलाव ला दिए थे। पत्नी अधिकांश समय बच्चे में व्यस्त रहती थी। नीलेश बेहद अकेला महसूस करने लगा , दोस्तों से कटने लगा। व्यवहार भी अचानक चिड़चिड़ा हो गया। अधिक समय ऑफिस में ही गुजरता। ऐसे बहोत से आपने अपने आसपास देखा होगा। या ये आप भी हो सकते है। पिता में आये इन बदलावों की वजह किसी को समज नहीं आती। क्योंकि अबतक बच्चे को जन्म देने के बाद महिलाओ में होने वाले बेबी ब्लूज यानि अवसाद ही चर्चा होती रहती है। पुरुष अवसाद पर हालाँकि बहोत शोध नहीं हुआ है , की कैसे "पोस्टमार्टम डिप्रेसन" नए पिता प्रभावित करता है। लेकिन शोध बताते है , की नए पिता भी उतने अवसादग्रस्त है , जितनी नयी माँ अध्ययन इस बात का सुझाव सलाह देते है , की इस अवसाद से माँ की तरह पिता को भी बचाना होगा।
बच्चे पर पड़ने वाला प्रभाव
किसी भी व्यक्ति के जीवन में पहली बार माता पिता बनना भावनात्मक है। पेरेंटिंग एक कठिन समय होता है। माँ की तरह पिता में भी अवसाद भी बच्चे के विकास पर बुरी तरह प्रभाव डालते है। क्योकि माता पिता बच्चे जीवन में अलग अलग भूमिका निभाते है। इसलिए यह बच्चो पर अलग अलग प्रभाव दाल सकता है। पिता के अवसाद से बच्चे दुसरो से काम बातचीत करते है। यह बच्चे में व्यवहार संबंधी परेशानी को बढाता है। पिता बच्चे से काम बातचीत करता है। पति पत्नी के बिच तनाव उत्पन्न होता है पिता के मानसिक स्वस्थ्य , बच्चे व परिवार से उसके रिश्तों के लिए अवसाद की पहचान और उपचार महत्वपूर्ण है।
क्या होता पोस्टमार्टम डिप्रेसन
अवसाद शारीरिक , सामाजिक , और भावनात्मक करेको की एक श्रृंखला है। यह पुरुसो में अवसाद विकसित करने में योगदान दे सकता है , यह हर उम्र आर्थिक स्थिति , व्यक्तित्व के पुरुष को प्रभावित सकता है। अबतक लोग पोस्टमार्टम डिप्रेसन को समज नहीं पाए है। अधिकांश लोग जानते है की गर्भावस्था या जल्दी माँ बनने के दौरान होने वाला अवसाद व चिंता महिलाओ के जीवन करती है। इससे सम्बंधित अधिकतर परिभाषाए महिलाओ के डिप्रेसन से ली गयी है। जिनमे जन्म के पहले महीने में तनाव देखा जाता है।इसका कोई प्रमुख कारन नहीं है। आमतौर पर ये भावनात्मक , तनावपूर्ण बच्चो के आने पर असहज अनुभव होने के कारण हो सकता है। वहीँ पिता बनने पर पुरुसो की जिम्मेदारी बढ़ा जाती है। आर्थिक चिंता जीवनशैली में बदलाव अनिंद्रा काम के बोझ से तनाव होने लगता है। दुर्भाग्य से इन पिताओ को महिलाओ के समान सहारा नहीं मिलता है। इसका कारण यह है की आदमी अपनी भावनाओ को व्यक्त नहीं करता है , बल्कि अपने पत्नी और परिवार सहारा देने की कोशिस करता है। हम अक्सर चिकित्स पध्दिति में लिंग भेद के बारे बात करते रहते है , की कैसे महिलाओ को उसी बिमारी या हालत के लिए इलाज मुहाया करवाया जाता है, जिससे पुरुष भी झुज रहे होते है। पुरुसो में अवसाद होने पर जरूरी नहीं है की उन्हे उनके साथी के समान भावनाओ का सामना पड़े। पितृत्व और पुरुषत्व को लेकर चले आ रहे है दृष्टिकोण का अर्थ यह हो की पुरुसो में इस बारे में बात करने की संभावना काम होती है की वे केसा महसूस करते है। समान रूप से प्रोत्साहित और देखरेख वाला बर्ताव किया जाना चाहिए।
मानसिक बीमारी का कलंक लगने की सोच मिटानी होगी
विशेषज्ञों का मानना है की उनके पास पुरुसो में होने वाले पोस्ट मार्टम अवसाद का लगाने या के लिए कोई पैमाना नहीं है , जबकि इसकी बेहद जरूरत है। मानसिक बीमारी का कलंक लगने के डर से लोग यह स्वीकारने से कतराते की , वे अवसाद से झुज रहे है। डे केयर पर आने वाले अवसादग्रस्त माता पिता के साथ अध्धययन के समय एक सामान रूप से प्रोहत्साहन और देखरेख करने वाला बर्ताव किया जाए। जाहिर है पिता भी उतने संवेदनशील होते है जितनी माए। अधिकांश लोग जानते गर्भावस्था या जल्दी माँ बनने के दौरान होने वाले अवसाद और चिंता सिर्फ महिलाओ के जीवन को प्रभावित कर सकता है। लेकिन 10 में से 1 नए पिता को पत्नी के गर्भावस्था या बच्चे के जन्म के बाद तनाव व अवसाद है।
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